कहानी का आरंभ
उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में पिराल सिंह नामक एक ईमानदार और मेहनती व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था। गांव में रोजगार के सीमित साधन थे। खेती-बाड़ी से केवल घर का राशन निकल पाता था, लेकिन बच्चों की शिक्षा और भविष्य के लिए कोई विकल्प नहीं था। पिराल के मन में हमेशा यह सपना था कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर कुछ बड़ा करें।
गांव की स्थिति को देखते हुए, उन्होंने शहर जाकर काम करने का निश्चय किया। पिराल ने अपनी पत्नी और बच्चों को भी साथ ले जाने का फैसला किया। उन्होंने सोचा कि शहर में बेहतर अवसर होंगे, और उनके बच्चों को भी एक अच्छी शिक्षा मिल सकेगी।
शहर की नई शुरुआत
शहर पहुंचने के बाद, पिराल को एक फैक्ट्री में काम मिल गया। यह फैक्ट्री लोहे के सांचे बनाने का काम करती थी। पिराल ने फैक्ट्री में बेहद मेहनत से काम शुरू किया। उनकी पत्नी ने भी घरों में झाड़ू-पोंछे और छोटे-मोटे काम शुरू कर दिए।
पिराल का दिन फैक्ट्री में सुबह 6 बजे से शुरू होकर रात के 8 बजे तक चलता था। 14 घंटे की मेहनत और थकावट के बावजूद, उनका परिवार खुश था क्योंकि उनके बच्चे स्कूल जाने लगे थे। लेकिन बढ़ते खर्चों ने पिराल को और ज्यादा काम करने पर मजबूर कर दिया। रविवार, जो छुट्टी का दिन माना जाता था, उस दिन भी पिराल को फैक्ट्री बुला लिया जाता था।
दुर्भाग्यपूर्ण दिन
एक रविवार, जब बाकी लोग अपने परिवार के साथ आराम कर रहे थे, पिराल फैक्ट्री में काम कर रहे थे। उनकी थकावट अपने चरम पर थी। मशीनों के तेज शोर और भारी काम के बीच उन्हें अचानक चक्कर आया। वह संभल नहीं सके और मशीन में गिर गए। वह सांचे में दब गए, और मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
फैक्ट्री के मजदूर और प्रबंधन स्तब्ध रह गए। लेकिन फैक्ट्री के मालिक ने इस घटना को जल्द से जल्द दबाने की कोशिश की। पुलिस और मालिक ने मुआवजे के तौर पर जो रकम पिराल के परिवार को दी थी, उसमें से आधे पैसे अपने पास रख लिए।
मशीन का अजीब व्यवहार
पिराल की मौत के बाद, फैक्ट्री फिर से अपने सामान्य संचालन में लौट आई। लेकिन जिस मशीन पर पिराल की मौत हुई थी, उसमें अजीब गतिविधियां शुरू हो गईं।
- बिना बिजली के वह मशीन अपने आप चलने लगती।
- कभी-कभी वह मशीन अपने आप बंद हो जाती।
- मजदूरों ने मशीन के पास अजीब सी आवाजें सुनने की शिकायत की।
शुरुआत में मजदूरों ने इसे तकनीकी खराबी समझा। लेकिन जब कई मजदूरों ने दावा किया कि उन्होंने मशीन के पास पिराल की छवि देखी है, तो फैक्ट्री में डर फैल गया।
फैक्ट्री मालिक की जिद
फैक्ट्री के मालिक ने इन सब बातों को अफवाह समझा। उसने कहा, “यह सब मनगढ़ंत कहानियां हैं। कोई भूत-प्रेत नहीं होता।” उसने मजदूरों को धमकाया कि वे अपना काम जारी रखें।
एक दिन, मालिक ने खुद मशीन को चालू करने का फैसला किया। उसने जैसे ही मशीन चालू की, वह सामान्य रूप से चलने लगी। लेकिन जब उसने एक सांचा बनाने की कोशिश की, तो मशीन ने उसे अपनी ओर खींच लिया। कुछ ही पलों में वह मशीन के अंदर दब गया। उसकी मौत उसी तरह हुई, जैसे पिराल की हुई थी।
पिराल की आत्मा का प्रकट होना
मालिक की मौत के बाद, फैक्ट्री में भगदड़ मच गई। तभी पिराल की आत्मा प्रकट हुई। उन्होंने सबके सामने कहा:
“यह बदला मैंने लिया है, क्योंकि मेरे साथ अन्याय हुआ था। जो लोग मेरे परिवार के मुआवजे का पैसा खा गए, उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है। अब मैं शांति से जा रहा हूं।”
फैक्ट्री के सभी कर्मचारी यह सुनकर स्तब्ध रह गए। पुलिस ने इस घटना को हादसा मानते हुए मामला बंद कर दिया।
न्याय और नई शुरुआत
पिराल के बेटे ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद फैक्ट्री को दोबारा चालू किया। उसने इस बात का प्रण लिया कि अब फैक्ट्री में मजदूरों का शोषण नहीं होगा।
- काम के घंटे कम किए गए।
- मजदूरों को उचित वेतन और छुट्टियां दी गईं।
- फैक्ट्री का माहौल पूरी तरह बदल गया।
पिराल का परिवार अब खुशहाल जीवन जी रहा था। उनके बच्चे बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हो गए। पिराल का बलिदान व्यर्थ नहीं गया।

कहानी का संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि अन्याय और शोषण का अंत अवश्य होता है। मेहनत और ईमानदारी से जीने वालों को अंततः न्याय मिलता है।