मेरा नाम दीपक सुन्द्रियाल है। मैं अल्मोड़ा के एक छोटे से गाँव से आता हूँ। अपनी पढ़ाई मैंने अपने गाँव से ही पूरी की है। अब मैं दिल्ली की भीड़भाड़ में अपने सपनों को पूरा करने में लगा हूँ। लेकिन आज भी मेरी कहानियों में मेरा पहाड़, मेरी पहाड़ी ज़िंदगी और वहाँ की सादगी बसी हुई है। मैं आज भी हर दिन अपनी लिखी पंक्तियों के ज़रिए अपने गाँव को जीता हूँ।
दमदार Aukat Shayari & Attitude Shayari – दिखाओ अपनी असली पहचान!
दमदार Aukat Shayari & Attitude Shayari – दिखाओ अपनी असली पहचान!
Aukat Shayari
हमसे उलझने की कोशिश मत करना, हमारे तेवर आग से कम नहीं। जिस दिन जल गए ना किसी पर, राख भी नहीं मिलेगी पहचान के लिए।
तेरी अकड़ मेरे सामने कुछ भी नहीं, तेरी औकात मेरे बिना कुछ भी नहीं। जिस दिन हमने ठान लिया तुझे गिराने का, तेरा नाम-ओ-निशान भी रहेगा नहीं।
हमसे जलने वालों का जलना जायज़ है,
क्योंकि हमारी पहचान ही अलग है।
जो भी आया टकराने, वो ढेर हु आ,
हमारी सोच और चाल ही सबसे तेज़ है।
औकात की बात मत कर ऐ दोस्त, हम वहां खड़े होते हैं, जहां मैप भी नहीं होता। खुद की दुनिया खुद ही बनाते हैं, किसी के एहसान के हम मोहताज नहीं होते।
तेवर हमारे खुद के हैं, असर तो दुश्मनों पर होता है। जिस दिन हमने रुतबा दिखाया, उस दिन नामों से ज्यादा चर्चे होंगे।
मुझे हराना है तो पहले खुद को जीत, मेरे जैसा बनना है तो खुद को तपाना सीख। हमसे मुकाबला करने के लिए, दिल और दिमाग दोनों बड़ा होना चाहिए।
बादशाह नहीं, सिकंदर भी नहीं, बस अपनी दुनिया का मैं खुद का राजा हूं। लोग नाम से नहीं, हमारे अंदाज से हमें पहचानते हैं।
शेर की तरह जीते हैं, कुत्तों की तरह नहीं, हमारे खिलाफ बोलने वाले, तेरा नाम भी नहीं। हमसे दुश्मनी सोच समझ कर करना, क्योंकि हमारे जैसा कोई दूसरा नहीं।
जो अपने हैं, वो खुद पहचान लेंगे, जो जलते हैं, वो दूर हट जाएंगे। हम किसी से कम नहीं, और किसी के रहमो-करम पर भी नहीं।
हमसे भिड़ने की कोशिश मत करना, हम वहीं से खेल शुरू करते हैं, जहां तुम हार मान लेते हो। हमारे खिलाफ जाने की मत सोचना, क्योंकि हम वो हैं, जो मैदान छोड़ते नहीं।
तू खेल अपनी चाल, हम अपनी शतरंज बिछाएंगे, तेरी औकात से ऊपर उठकर खेलेंगे। हमारे Attitude का लेवल समझने के लिए, तेरी सोच भी छोटी पड़ जाएगी।
मेरा नाम दीपक सुन्द्रियाल है। मैं अल्मोड़ा के एक छोटे से गाँव से आता हूँ। अपनी पढ़ाई मैंने अपने गाँव से ही पूरी की है। अब मैं दिल्ली की भीड़भाड़ में अपने सपनों को पूरा करने में लगा हूँ। लेकिन आज भी मेरी कहानियों में मेरा पहाड़, मेरी पहाड़ी ज़िंदगी और वहाँ की सादगी बसी हुई है। मैं आज भी हर दिन अपनी लिखी पंक्तियों के ज़रिए अपने गाँव को जीता हूँ।