ग़रीब बूढ़े किसान के दो बेटों की कहानी – Ramu और Saymu की अनोखी दास्तान-Garib kishan ke Do Bete Ramu or saym

ग़रीब बूढ़े किसान के दो बेटों की कहानी – Ramu और Saymu की अनोखी दास्तान-Garib kishan ke Do Bete Ramu or saym

Garib kisan ki kahani

एक गरीब किसान की दास्तान

गाँव में एक गरीब किसान अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में था। उसकी पत्नी बुज़ुर्ग हो चुकी थी और अब सिर्फ़ दो बेटे थे—रामू और सायमु। बड़ा बेटा रामू चालाक और समझदार था, जबकि छोटा बेटा सायमु आधा पागल था।

एक दिन रामू खेत में हल चलाने जा रहा था। उसने सायमु से कहा, “माँ को स्नान करवा देना और फिर आराम से बिस्तर पर सुला देना। इसके बाद मेरे लिए चाय लेकर खेत में आ जाना।”

सायमु की मासूमियत और माँ की त्रासदी

रामू खेत चला गया। उधर, सायमु माँ को नहलाने के लिए तैयार हो गया। उसने चूल्हे पर पानी गरम किया। लेकिन वह समझ नहीं पाया कि पानी कितना गरम होना चाहिए। पानी उबलने लगा, और सायमु ने माँ को आँगन में बुलाया।

उसने कहा, “बड़े भाई ने कहा है कि तुम्हें नहलाना है, तो मैं तुम्हें नहला रहा हूँ।” उसने माँ को बोरे पर बैठाया और उबलते पानी को उनके सिर पर डाल दिया। अचानक, माँ जोर-जोर से चिल्लाने लगी। कुछ ही पलों में उनकी त्वचा झुलस गई और वे वहीं मर गईं।

सायमु को यह समझ नहीं आया कि उसने क्या किया। वह माँ को चारपाई पर लिटा कर ऊपर से चादर डालकर खेत में रामू के पास चला गया।

रामू को सच्चाई का पता चलता है

रामू ने सायमु से पूछा, “माँ को स्नान करवा दिया?”

सायमु ने खुश होकर जवाब दिया, “हाँ, माँ अब बहुत सुंदर और गोरी हो गई हैं। मैंने उन्हें चारपाई पर सुला दिया है और चादर भी ओढ़ा दी है।”

रामू खेत का काम खत्म कर घर आया। उसने माँ को पुकारा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। जैसे ही उसने चादर हटाई, वह स्तब्ध रह गया। माँ की पूरी त्वचा झुलस चुकी थी, और वे इस दुनिया से जा चुकी थीं।

माँ की अंतिम यात्रा

गाँव के लोग इकट्ठा हुए। माँ के अंतिम संस्कार की तैयारी की गई। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, जब किसी की मृत्यु होती है, तो अंतिम यात्रा खाली पेट जानी चाहिए।

अगली सुबह, दोनों भाई माँ की अर्थी लेकर श्मशान घाट की ओर चल पड़े। रास्ते में सायमु अचानक रुक गया और बोला, “भाई, मैं बिना खाना खाए घाट नहीं जा सकता।”

रामू परेशान हो गया। मजबूरी में उसने तवे पर भट (उत्तराखंड की एक लोकल दाल) भुनी और चार मुठ्ठी सायमु की जेब में डाल दी।

सायमु अब शांति से चलने लगा। रास्ते में, वह जेब से भट निकालकर खाने लगा। अचानक, उसे ज़मीन पर एक काला कीड़ा दिखा, जो देखने में भट जैसा लग रहा था। उसने सोचा कि यह उसकी जेब से गिरा होगा और उसे खा लिया।

विरासत का बंटवारा

अंतिम संस्कार के कुछ दिनों बाद, दोनों भाइयों ने संपत्ति का बंटवारा करने का फैसला किया। लेकिन उनके पास कुछ भी नहीं था—सिर्फ़ एक दूध देने वाली भैंस, हल चलाने के लिए एक बैल, और ओढ़ने के लिए एक कंबल।

गाँव में पंचायत बुलाई गई। रामू बोला, “बैल मेरा होगा, क्योंकि मैं हल चलाना जानता हूँ। सायमु को हल चलाना नहीं आता, इसलिए उसे बैल की ज़रूरत नहीं।”

सायमु ने कोई विरोध नहीं किया। इसके बाद, भैंस के बँटवारे की बारी आई। रामू ने कहा, “भैंस का ऊपरी हिस्सा तेरा और निचला हिस्सा मेरा रहेगा।”

गाँववालों को यह सुनकर अजीब लगा, लेकिन सायमु ने फिर भी हाँ कर दी।

सायमु की होशियारी

हर दिन, सायमु भैंस के लिए घास लाता। रामू आराम से बैठकर दूध निकालता और पीता। सर्दियों के दिन थे, इसलिए कंबल का भी बंटवारा हुआ।

रामू बोला, “दिन में कंबल तेरा रहेगा और रात में मेरा।”

अब सायमु को सर्दी में दिनभर काम करना पड़ता और रात में बिना कंबल के ठंड से काँपना पड़ता। गाँववालों ने उसे सलाह दी, “जब रामू दूध निकाले, तो तू भैंस के कमर के पीछे जाकर उसे डंडे से मारना।”

सायमु ने वैसा ही किया। जब रामू दूध निकालने लगा, सायमु ने भैंस को पीटना शुरू कर दिया। रामू चिल्लाया, “तू ये क्या कर रहा है?”

सायमु ने जवाब दिया, “ऊपरी हिस्सा मेरा है, मैं कुछ भी कर सकता हूँ!”

रामू समझ गया कि सायमु अब मूर्ख नहीं रहा। उसने कहा, “अच्छा, अब से हम दोनों दूध बराबर बाँटेंगे।”

सायमु बोला, “ठीक है, अब कंबल भी आधा-आधा इस्तेमाल होगा। दिन में तेरे पास और रात में मेरे पास।”

अब दोनों भाई सुखी जीवन बिताने लगे।

निष्कर्ष

गरीब किसान के इन दो बेटों की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में होशियारी और ईमानदारी दोनों ज़रूरी हैं। अगर कोई चालाकी से किसी भोले इंसान का फायदा उठाए, तो कभी न कभी सच्चाई सामने आ ही जाती है।

श्यामू मंदबुद्धि जरूर था, लेकिन वह मासूम और ईमानदार था। धीरे-धीरे उसने भी जीवन के अनुभवों से सीख ली और अपना अधिकार हासिल कर लिया।

यह कहानी हमें यह भी बताती है कि गरीब किसान चाहे जितना भी संघर्ष करे, अगर वह हिम्मत और समझदारी से काम ले, तो अपनी ज़िंदगी को संतुलित कर सकता है।

Deepak Sundriyal

मेरा नाम दीपक सुन्द्रियाल है। मैं अल्मोड़ा के एक छोटे से गाँव से आता हूँ। अपनी पढ़ाई मैंने अपने गाँव से ही पूरी की है। अब मैं दिल्ली की भीड़भाड़ में अपने सपनों को पूरा करने में लगा हूँ। लेकिन आज भी मेरी कहानियों में मेरा पहाड़, मेरी पहाड़ी ज़िंदगी और वहाँ की सादगी बसी हुई है। मैं आज भी हर दिन अपनी लिखी पंक्तियों के ज़रिए अपने गाँव को जीता हूँ।
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