उत्तराखंड: देवभूमि का हाट कालिका मंदिर और उसकी महिमा

उत्तराखंड: देवभूमि का हाट कालिका मंदिर और उसकी महिमा

हाट कालिका मंदिर

उत्तराखंड – देवभूमि की अनोखी पहचान

उत्तराखंड, जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर भी अत्यधिक महत्व रखती है। इस राज्य का हर स्थान अपनी पौराणिक कहानियों और धार्मिक स्थलों से जुड़ा हुआ है, जो इसे खास बनाता है। उत्तराखंड में एक ऐसा ही पवित्र स्थल है, जो अपनी धार्मिक महिमा और ऐतिहासिक महत्व के कारण श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बना हुआ है। यह स्थल है गंगोलीहाट, जो पिथौरागढ़ जिले में स्थित है, और यहां स्थित है हाट कालिका मंदिर।

गंगोलीहाट और हाट कालिका मंदिर का महत्व

गंगोलीहाट उत्तराखंड के एक छोटे से गांव के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस गांव का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत ज्यादा है। गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका मंदिर, महाकाली के एक प्रसिद्ध रूप को समर्पित है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी के रूप में भी पूजी जाती है।

हाट कालिका मंदिर की महिमा से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है, जो इस मंदिर के महत्व को और भी बढ़ाती है। इस मंदिर का संबंध कुमाऊं रेजिमेंट की वीरता से जुड़ा हुआ है, और यह रेजिमेंट की संरक्षक देवी मानी जाती है।

हाट कालिका मंदिर और कुमाऊं रेजिमेंट

कुमाऊं रेजिमेंट भारतीय सेना की एक अत्यधिक सम्मानित रेजिमेंट है, जो अपने पराक्रम और वीरता के लिए जानी जाती है। कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिक हाट कालिका मां को अपनी आराध्य देवी मानते हैं। यह विशेष संबंध एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ा हुआ है।

कहा जाता है कि एक युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट की एक टुकड़ी पानी के जहाज से यात्रा कर रही थी। इस दौरान जहाज में तकनीकी खराबी आ गई और वह डूबने लगा। टुकड़ी के सैनिकों के सामने मौत का खतरा था, और सबकी जान खतरे में थी। ऐसे में पिथौरागढ़ के एक सैनिक ने हाट कालिका मां का आह्वान किया, और वह चमत्कारी घटना घटी, जिसके बाद जहाज डूबने के बजाय सुरक्षित किनारे पर पहुँच गया। इस घटना के बाद से हाट कालिका मां कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी बन गईं।

आज भी कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिक नियमित रूप से इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं, और उनकी युद्ध घोष “कालिका माता की जय” है। यह भी माना जाता है कि कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिक जब भी युद्ध में जाते हैं, तो वे मां कालिका से विजय की प्रार्थना करते हैं।

हाट कालिका मंदिर के बारे में पुराणों में उल्लेख

हाट कालिका मंदिर की धार्मिक महत्वता को पुराणों में भी स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। स्कंद पुराण के मानस खंड में हाट कालिका मंदिर का उल्लेख है। पुराणों के अनुसार, इस क्षेत्र में एक दैत्य का आतंक था जिसका नाम सुम्या था। इस दैत्य ने देवताओं को भी परास्त कर दिया था, और उनका आतंक इस क्षेत्र में व्याप्त था। देवताओं ने इस दैत्य से मुक्ति पाने के लिए देवी दुर्गा की स्तुति की।

देवी दुर्गा की स्तुति से प्रसन्न होकर मां महाकाली ने सुम्या दैत्य का वध किया और देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इसके बाद से यह स्थान महाकाली के शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाने लगा। कुछ कथाएं यह भी कहती हैं कि महाकाली ने महिषासुर और रक्तबीज जैसे राक्षसों का वध भी इसी स्थान पर किया था। इस प्रकार, हाट कालिका मंदिर का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है।

आदि गुरु शंकराचार्य और मंदिर की पुनर्स्थापना

यह माना जाता है कि हाट कालिका मंदिर पहले से ही एक पवित्र स्थान था, लेकिन देवी कालिका के प्रकोप के कारण यह स्थान निर्जन हो गया था। कहा जाता है कि देवी का प्रकोप इतना अधिक था कि इस स्थान से लोग डरकर भागने लगे थे।

जब आदि गुरु शंकराचार्य इस क्षेत्र में आए, तो उन्हें देवी कालिका के प्रकोप के बारे में बताया गया। उन्होंने अपनी तंत्र-मंत्र साधना से देवी को शांत किया और फिर इस मंदिर की पुनर्स्थापना की। इस प्रकार, आदि गुरु शंकराचार्य ने ही इस मंदिर को फिर से स्थापित किया और इसे धार्मिक दृष्टि से पुनः महत्त्वपूर्ण बना दिया।

हाट कालिका मंदिर में प्रचलित मान्यताएँ

हाट कालिका मंदिर में कई सदियों पुरानी मान्यताएँ प्रचलित हैं, जो भक्तों को आकर्षित करती हैं। इन मान्यताओं में एक खास परंपरा है, जो आज भी मंदिर में निभाई जाती है।

मंदिर के पुजारी हर शाम को एक बिस्तर लगाते हैं। जब मंदिर के कपाट सुबह खोले जाते हैं, तो बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती हैं। यह मान्यता है कि मां कालिका रात के समय इस स्थान पर विश्राम करती हैं। इस परंपरा को आज भी भक्तों द्वारा श्रद्धापूर्वक माना जाता है।

इसके अलावा, हाट कालिका मंदिर में एक और मान्यता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से मां की पूजा करता है, तो उसकी मनोकामना पूरी होती है। भक्त यहां चुनरी बांधकर अपनी इच्छा मां से कहते हैं, और जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है, तो वे वापस आकर मंदिर में घंटी चढ़ाने की परंपरा निभाते हैं।

हाट कालिका के अन्य रूप

हाट कालिका का एक अन्य रूप पिथौरागढ़ से 20 किलोमीटर दूर लछैर नामक स्थान पर भी है। यह स्थान उन भक्तों के लिए है जो गंगोलीहाट नहीं पहुँच सकते। लछैर का कालिका मंदिर भी भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां भी भक्तों की पूजा-अर्चना की जाती है और यह स्थान हाट कालिका के मुख्य रूप के साथ जुड़ा हुआ है।

निष्कर्ष

हाट कालिका मंदिर उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी के रूप में हाट कालिका मां का स्थान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। पुराणों में इस मंदिर का उल्लेख और आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इसकी पुनर्स्थापना से यह स्थल और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। आज भी यहां की मान्यताएँ और परंपराएँ श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं, और यह मंदिर उत्तराखंड के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

हाट कालिका मंदिर की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण अनुभव प्रदान करती है, जो हर श्रद्धालु के दिल में एक विशेष स्थान बना देती है।

Deepak Sundriyal

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