राजा विक्रमादित्य की मृत्यु और उनके स्वर्ण सिंहासन की कहानी

राजा विक्रमादित्य की मृत्यु और उनके स्वर्ण सिंहासन की कहानी

राजा विक्रमादित्य
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राजा विक्रमादित्य, जो भारत के महानतम सम्राटों में से एक माने जाते थे, अपने जीवन काल में न्याय, धर्म, और कर्तव्य के प्रति समर्पित थे। अपने अंतिम दिनों में जब उन्होंने महसूस किया कि मृत्यु निकट है, उन्होंने अपनी प्रजा से विदाई ली और जंगल में साधना के लिए एक कुटिया बनाई।

एक रात, कुटिया में रहस्यमय प्रकाश दिखाई दिया। उस प्रकाश से उन्हें एक सुन्दर भवन दिखा, जिसे उन्होंने देखने की इच्छा जताई। उन्हें यह भवन योगी महात्मा द्वारा संरक्षित बताया गया, जहां केवल पुण्य और तपस्या से भरा हुआ व्यक्ति ही प्रवेश कर सकता था। विक्रमादित्य ने अपनी योग्यता का परीक्षण किया और अंततः उस भवन तक पहुंचे।

वहां योगी महात्मा से मिलने के बाद, विक्रमादित्य ने उस भवन को अपने नाम पर लेने की इच्छा जताई। योगी ने उन्हें भवन प्रसन्नतापूर्वक दे दिया, और फिर वे योगी वहाँ से कहीं चले गए।

विक्रमादित्य का अंतिम आदेश:

अपने अंतिम दिनों में, विक्रमादित्य ने अपने सिंहासन को लेकर भी एक विशेष आदेश दिया। उन्होंने अपने पुत्र को इस सिंहासन पर बैठने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने देखा कि कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस सिंहासन पर बैठने से रोक रही है। इससे उनकी मनःस्थिति में भारी उलझन आ गई।

एक रात, स्वप्न में राजा विक्रमादित्य उनके पुत्र के पास आए और उन्होंने कहा कि जब तक वह पुण्य-प्रताप से उस सिंहासन पर बैठने योग्य नहीं हो जाएगा, तब तक यह सिंहासन उसकी किस्मत में नहीं होगा।

सिंहासन का अंत और भविष्य का संकेत:

जब पुत्र को समझ में नहीं आया कि इस सिंहासन का क्या करना है, तो उसने अपने राज्य के विद्वानों से परामर्श लिया। विद्वानों ने विक्रम के स्वप्न की व्याख्या की, जिसमें राजा ने अपने सिंहासन को गहरे गड्ढे में समाहित करने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि इस सिंहासन को तब तक गहरे दबा दिया जाए जब तक कि कोई अगले जन्म में पृथ्वी पर महान पुरुष के रूप में ना आए।

पुत्र ने सुबह ही श्रमिकों को बुलवाकर सिंहासन को गड्ढे में समाहित कर दिया और खुद अपनी नई राजधानी बनाकर वहां रहने चला गया।

सिंहासन की रहस्यमयी शक्ति:

विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद, उनका सिंहासन धीरे-धीरे गहरे धरती में दब गया। किंवदंती है कि इस स्वर्ण सिंहासन के भीतर कुछ अदृश्य शक्ति समाहित है, जो इसे फिर से प्रकट कर सकती है जब भी धरती पर कोई महान व्यक्ति अपने पुरुषार्थ और गुणों के साथ इस सिंहासन को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त होगा।

इस रहस्यमयी स्वर्ण सिंहासन का आज भी कोई पता नहीं है। कहा जाता है कि जब भविष्य में कोई महान राजा धरती पर जन्म लेगा, वह इसी स्वर्ण सिंहासन को पुनः धरती से बाहर लाएगा और उस पर विराजमान होगा।

संक्षेप में:

राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद उनके स्वर्ण सिंहासन का क्या हुआ, इस रहस्यमयी सिंहासन को उनकी इच्छानुसार गहरे गड्ढे में दबा दिया गया। यह तब तक बाहर नहीं आएगा जब तक पृथ्वी पर कोई महान राजा पुनः जन्म नहीं लेगा, और उस सिंहासन को अपनी योग्यता से प्राप्त नहीं करेगा।

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Deepak Sundriyal

मेरा नाम दीपक सुन्द्रियाल है। मैं अल्मोड़ा के एक छोटे से गाँव से आता हूँ। अपनी पढ़ाई मैंने अपने गाँव से ही पूरी की है। अब मैं दिल्ली की भीड़भाड़ में अपने सपनों को पूरा करने में लगा हूँ। लेकिन आज भी मेरी कहानियों में मेरा पहाड़, मेरी पहाड़ी ज़िंदगी और वहाँ की सादगी बसी हुई है। मैं आज भी हर दिन अपनी लिखी पंक्तियों के ज़रिए अपने गाँव को जीता हूँ।
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