The Dog Story in uttarakhand गली के शेर – Rummy और Broc की कहानी

The Dog Story in uttarakhand गली के शेर – Rummy और Broc की कहानी

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लेखक: दीपु

“कभी-कभी जिंदगी की सबसे बड़ी उड़ान, एक छोटी-सी गली से शुरू होती है।”

आप सभी को मेरा नमस्कार।
मैं दीपु, और आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं जो सिर्फ दो कुत्तों की नहीं है — ये कहानी है अपनापन, बदलाव, और उस अहसास की, जो हमें ये समझने पर मजबूर करती है कि जो चीज़ हम छोड़ आए हैं, क्या वाकई वो पिछड़ापन था? या शायद वो ही असली जीवन था?

एक गली, दो दोस्त और एक दुनिया

दिल्ली के एक कोने में, भीड़-भाड़ वाली एक तंग सी गली थी। वहीं रहते थे Rummy और Broc — दो आवारा मगर वफादार कुत्ते। दोनों अनाथ थे। उनकी मां उन्हें छोड़कर दुनिया से बहुत पहले चली गई थी। इंसान तो क्या, शायद खुद किस्मत ने भी उनका साथ छोड़ दिया था।

लेकिन फिर भी, Rummy और Broc ने उस गली को अपना घर बना लिया। वहां की दीवारें उनकी पनाह थीं, गली का हर बच्चा उनका दोस्त, और हर कोना उनकी यादों का हिस्सा।

Rummy थोड़ा शांत, समझदार और ठहराव से भरा था — जैसे कोई बूढ़ा फकीर।
Broc बिल्कुल उल्टा — चंचल, जिद्दी और जोश से भरा।
एक सोचता था, तो दूसरा कूद पड़ता था। एक चुप रहता था, तो दूसरा पूरे मोहल्ले को जगा देता था।
लेकिन दोनों की दोस्ती — बेइंतहा और बेमिसाल।

वो गली ही उनकी दुनिया थी।

शहर की दीवारों के पार की कहानी

कहानी में मोड़ तब आया, जब एक इंसान — शूरन — जो उसी गली में रहता था, उन दोनों पर नज़र रखने लगा।
शूरन अक्सर उन्हें देखता, उनके बीच की दोस्ती, उनकी दिनचर्या, और उनकी आंखों में छिपी वो मासूमियत।

एक दिन उसने सोचा –
“क्या ये दोनों सिर्फ इसी गली के लायक हैं? क्या इनकी दुनिया इतनी ही छोटी होनी चाहिए? क्यों न इन्हें कुछ और दिखाया जाए?”

और फिर एक रात, जब पूरा शहर नींद में था, Rummy और Broc सपनों में अपने गुज़रे दिन जी रहे थे… शूरन आया।
धीरे से उन्हें उठाया, एक बड़ी बोरी में रखा, और अपनी कार में बैठाकर चल पड़ा — उत्तराखंड की ओर, अपने गांव।

सफर — गली से पहाड़ों तक

Rummy और Broc जब आधी नींद में जागे, तो खुद को एक बंद बोरी में पाया। घबराए, गड़बड़ाए… कुछ समझ नहीं आया।
फिर कार की खिड़की से जब बाहर झांका —
हरे-भरे पेड़, नीला आसमान, दूर-दूर तक फैले पहाड़, चिड़ियों की आवाज़, और एक अलग ही हवा की खुशबू…

Rummy ने कहा —
“Broc, देख… ये दुनिया कितनी बड़ी है। हमारी गली तो बस एक कोना था।”

Broc मुस्कुराया —
“और हम सोचते थे, हम ही राजा हैं। ये तो पूरी एक बादशाही है!”

गांव – जहां हवा में सुकून था

गांव पहुंचते ही शूरन ने सबसे पहले एक दुकान पर रुककर उनके लिए दूध और बिस्कुट मंगवाए।
फिर अपने घर ले जाकर बच्चों से मिलवाया। बच्चों ने जैसे नए खिलौने पाए हों — खुशी से झूम उठे।
Rummy और Broc ने भी पहली बार किसी इंसानी परिवार की इतनी गर्मजोशी देखी।

खुले मैदान, मिट्टी में खेलना, नदियों के किनारे दौड़ना…
धीरे-धीरे वो दोनों शहर की सड़कें भूलने लगे।
गांव का हर बच्चा उनका दोस्त बन गया, और हर घर उन्हें पहचानने लगा।

एक नई सोच की शुरुआत

रात को जब सब सो जाते, Rummy और Broc एक-दूसरे से कान में धीमे-धीमे पूछते —

“Rummy, हमें अपनी गली की याद नहीं आती?”
“आती है Broc… पर यहां की ज़िंदगी में एक अलग ही मिठास है।”

कुछ ही दिनों में वो गांव में रम गए।
अब उन्हें समझ आने लगा कि असली ज़िंदगी क्या होती है —
जहां सांस लेने के लिए धुएं की जगह ताज़ा हवा हो,
जहां हर चेहरा मुस्कुराता हो,
और जहां ज़िंदगी भागती नहीं — बहती है।

कहानी का संदेश – हमारी अपनी ‘गली’

अब ज़रा सोचिए, जब दो आवारा कुत्ते शहर छोड़कर गांव जाते हैं और वहां की शांति को अपना लेते हैं —
तो हम इंसान, जो खुद गांव छोड़कर शहर की गलियों में खो गए हैं… क्या हमने सही चुना?

शहर हमें रोज़ रफ्तार देता है, पर सुकून नहीं।
हर कदम पर भीड़ है, लेकिन अपनापन नहीं।
हम समझते हैं कि प्रगति शहर में है — पर क्या वाकई?

Rummy और Broc की तरह हम सब भी कभी किसी गली के राजा थे।
हमारे भी दोस्त थे, खेल थे, खामोश दोपहरें और ठंडी रातें थीं।
लेकिन हमने वो सब छोड़ दिया… एक ऐसे जीवन के लिए जिसमें सब है — सिवाय शांति के।

अंतिम पंक्तियाँ – एक सोचने वाली बात

“कभी गली की वो तंग सी दीवारें, असल में हमें पंख देती थीं।
और अब जब खुले शहर में उड़ते हैं, तो महसूस होता है —
ज़िंदगी तो वहीं थी, जहां दिल मुस्कुराता था।”

Rummy और Broc अब गांव में खुश हैं, लेकिन जब भी गांव की रातों में आकाश को देखते हैं, उन्हें अपनी वो गली ज़रूर याद आती है।
हम भी जब थक जाते हैं, किसी पहाड़, किसी नदी, किसी गांव का सपना देखने लगते हैं।

क्यों न हम खुद से पूछें —
“क्या वाकई हमने सही चुना?”

अगर ये कहानी आपको छू गई हो, तो इसे आगे ज़रूर साझा करें।
शायद कोई और Rummy और Broc की तरह अपने भीतर झाँक सके।

– दीपु

Deepak Sundriyal

मेरा नाम दीपक सुन्द्रियाल है। मैं अल्मोड़ा के एक छोटे से गाँव से आता हूँ। अपनी पढ़ाई मैंने अपने गाँव से ही पूरी की है। अब मैं दिल्ली की भीड़भाड़ में अपने सपनों को पूरा करने में लगा हूँ। लेकिन आज भी मेरी कहानियों में मेरा पहाड़, मेरी पहाड़ी ज़िंदगी और वहाँ की सादगी बसी हुई है। मैं आज भी हर दिन अपनी लिखी पंक्तियों के ज़रिए अपने गाँव को जीता हूँ।
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